जीवनदायिनी गंगा और मतदायिनी जनता के साथ छल, करोड़ों खर्च करने के बाद भी गंगाजल आचमन योग्य नहीं, एनजीटी की रिपोर्ट में खुलासा।

जीवनदायिनी गंगा और मतदायिनी जनता के साथ छल, करोड़ों खर्च करने के बाद भी गंगाजल आचमन योग्य नहीं, एनजीटी की रिपोर्ट में खुलासा।

Pollution of the Ganges: जीवनदायिनी गंगा और मतदायिनी जनता के साथ छल, करोड़ों खर्च करने के बाद भी गंगाजल आचमन योग्य नहीं, एनजीटी की रिपोर्ट में खुलासा। उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में कई जगह सीवेज की गंदगी गिरने की वजह से नदी के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा कि प्रदेश में प्रतिदिन लाखों लीटर गंदा पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिर रहा है। एनजीटी ने एक महीने के अंदर उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव से हालात से निपटने और जल को दूषित होने से रोकने के लिए किए जा रहे उपायों के साथ हलफनामा देने को कहा है। साथ ही, मामले में सुनवाई 20 जनवरी तय की गई है। पिछली सुनवाई में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण पर विचार करते हुए ट्रिब्यूनल ने यूपी सहित विभिन्न राज्यों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी थी।

NGT के अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 6 नवंबर के आदेश में कहा कि यूपी के प्रयागराज में गंगा का जल आचमन के लायक भी नहीं रह गया। जिले में 25 खुले नालों से गंगा नदी में और 15 खुले नालों से यमुना नदी में सीवेज की गंदगी गिर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से जो रिपोर्ट दी गई है, उसके अनुसार प्रयागराज जिले में सीवेज की गंदगी के शोधन में 128 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) का अंतर पाया गया है।

एनजीटी ने कहा, “केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) की रिपोर्ट में बताए गए यूपी के 326 नालों में से 247 नालों के पानी का शोधन नहीं किया गया है। इन खुले नालों से 3,513.16 एमएलडी अपशिष्ट पानी गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिर रहा है। स्थिति पर असंतोष जताते हुए अधिकरण ने यूपी के मुख्य सचिव को हलफनामे में विभिन्न जिलों में हर नाले और उनसे उत्पन्न होने वाले सीवेज और प्रस्तावित सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के बारे में विस्तृत जानकारी तलब की है।” एनजीटी ने सीपीसीबी की उस रिपोर्ट पर भी गौर किया, जिसमें गंगा किनारे स्थित 16 शहरों में 41 एसटीपी (Sewage Treatment Plant) की जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, छह संयंत्र काम नहीं कर रहे हैं। यही नहीं, जो 35 एसटीपी चालू हैं, उनमें से केवल एक में ही नियमों का सही अनुपालन पाया गया है।

पीठ ने CPCB की रिपोर्ट के हवाले से कहा, उत्तर प्रदेश में 41 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि फीकल कोलीफॉर्म (FC-Fecal Coliform) बैक्टीरिया 16 स्थानों पर 500/100 मिलीलीटर की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) से अधिक है। इसके अतिरिक्त, 17 स्थानों पर 2,500 एमपीएन/100 मिलीलीटर से अधिक है। सीपीसीबी के अनुसार, फीकल (मल) कोलीफॉर्म का मानक स्तर एमपीएन 500/100 मिलीलीटर है। फीकल कोलीफॉर्म एक तरह का बैक्टीरिया है, जो भोजन की गुणवत्ता को खराब करता है और मनुष्यों के साथ जानवरों में भी कई बीमारी का कारण बनता है।