शक्तिपीठ – अलोपीदेवी मंदिर: मां भगवती को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के प्रयागराज शहर में स्थित है। मान्यतानुसार, देवी सती के दाहिने हाथ का पंजा इस स्थान पर कटकर गिरा था लेकिन यहां एक कुंड में गिरते ही वो पंजा अलोप अर्थात विलुप्त हो गया। तबसे इस मंदिर का नाम अलोपशंकरी रखा गया। अलोप का अर्थ गायब और शंकरी मां पार्वती को ही कहा जाता है। इस शक्ति पीठ में देवी की मूर्ति की पूजा के बजाय एक पालने (डोली) की पूजा होती है। यह पालना मंदिर प्रांगण में एक दस फीट चौड़े कुंड के ऊपर चांदी के चबूतरे पर लटका हुआ है। यहां भक्त रक्षा सूत्र बांधकर देवी से सुरक्षा की मनोकामना मांगते हैं।
प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) के अलोपीबाग इलाके में मौजूद ये अलोपी देवी मंदिर (Alopi Devi Mandir) लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है और दूर दूर से भक्त यहां मनोकामना मांगने आते हैं। मंदिर को ललिता मंदिर और महादेवेश्वरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ललिता भी पार्वती मां का ही नाम है और महादेवेश्वरी का मतलब हुआ महादेव की पत्नी यानी मां पार्वती।
प्रयागराज के जिस इलाके अलोपीबाग में ये शक्तिपीठ मौजूद है, उसका नाम भी इसी मंदिर की प्रसिद्धि के नाम पर रखा गया है। ये शक्तिपीठ प्रयागराज में मशहूर संगम तट (जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मेल होता है) के बहुत करीब है। प्रयाग राज को संगम नगरी और तीर्थराज भी कहा जाता है। भक्त यहां मनोकामना मांगते वक्त हाथ पर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि जब तक रक्षा सूत्र बंधा रहेगा, मां उस भक्त की सुरक्षा करती रहेंगी।
नवरात्र के दिनों में अलोप शंकरी देवी मंदिर (Alop Shankari Devi Shakti Peeth) की विशेषताएं और बढ़ जाती हैं और यहां सुबह शाम भक्तों का तांता लगा रहता है। श्रद्धालु पालने का दर्शन करते हैं, और इसकी पूजा करते हैं। इसी पालने मे देवी का स्वरूप देखकर उनसे सुख समृद्धि व वैभव का आशीर्वाद लेते हैं। यहाँ पर नारियल और चुनरी के साथ जल व सिन्दूर चढाये जाने की भी परंपरा है।