सूर्यमंदिर आंवलखेड़ा: सूर्यदेव को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के आगरा शहर में स्थित है। यह सूर्य मंदिर आगरा से जलेसर मार्ग पर 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण गायत्री परिवार के मुख्यालय हरिद्वार स्थित शांतिकुंज द्वारा अगस्त 2011 से शुरू कराया गया था। मंदिर का नक्शा नागपुर के आर्किटेक्ट अशोक मोखा ने बनाया। दिल्ली की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा जयपुर, दिल्ली और नागपुर के प्रशिक्षित कारीगरों के सहयोग से 4 वर्ष में तैयार किया गया। हालांकि, समय समय पर मंदिर में सुधार होते रहे। 24 मार्च 2024 को गायत्री परिवार के संचालक एवं देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पांड्या ने हरिद्वार से वर्चुअल उद्घाटन किया।
आगरा से जलेसर मार्ग पर स्थित आंवलखेड़ा लंबे समय से आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता रहा है। आंवलखेड़ा गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जन्मस्थली रही है। पंडित श्रीराम शर्मा ने आंवलखेड़ा में वर्ष 1995 में अश्वमेघ महायज्ञ का आयोजन किया था। उस महायज्ञ में तत्कालीन प्रधामंत्री पीवी नरसिम्हा राव (P V Narasimha Rao), तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा (Moti Lal Bora) सहित तमाम राजनीतिक हस्तियाें ने आहुति दी थी। इस महायज्ञ में 1251 कुंड बने थे जिन्हें पचास वर्गो में विभाजित किया गया था। एक बार में 12500 से अधिक श्रद्धालुओं ने आहुति दी थी।
मंदिर के वास्तुकला के बारे में बात करें तो इस मंदिर के कक्ष के केंद्र में धवल संगमरमर से बनी मूर्ति में भगवान भास्कर देव सारथी के साथ रथ पर सवार हैं। उनके रथ में 7 घोड़े इस मुद्रा में हैं कि मानो अभी दौडऩे लगेंगे। इसके पीछे उदीयमान सूर्य का दृश्य उकेरा गया है। मंदिर में गायत्री मंत्र और प्रज्ञा गीत की धुन निरंतर बजती रहती है। इस मंदिर में स्थापित की गई सूर्यदेव की मूर्ति चेन्नई से तैयार होकर आई है। मंदिर के शिखर पर वृत्ताकार में लेंस लगाया है। लेंस के जरिए मूर्ति और भवन को प्रकाशित करते रहना ही इस मंदिर की विशेषता है। यह मंदिर परंपरागत मंदिरों से कुछ भिन्न नजर आता है। सूर्य मंदिर के नीचे के तल में स्वस्तिक भवन है। यहां पं.श्रीराम शर्मा आचार्य के जीवनवृत्त, व्यक्तित्व और कृतित्व की प्रदर्शनी है। आचार्यश्री द्वारा लिखित 3200 पुस्तकें, चारों वेद, 108 उपनिषद, छह दर्शन, 20 स्मृति, 18 पुराण, गीता एवं रामायण सारांश, गायत्री महाविज्ञान तथा दैनिक जीवन से जुड़ी वस्तुएं यहां देखी जा सकती हैं।
एक अन्य मूर्ति में भगवान सूर्य को 4 घोड़ों के रथ में बैठे दिखाया गया है। वे कुर्सी पर बैठने की मुद्रा में पैर लटकाए हुए हैं। उनके दोनों हाथों में कमल की एक-एक कली है। उनके दोनों कंधों पर सूर्य-पक्षी गरुड़ जैसे दो छोटे-छोटे पंख लगे हुए हैं। भारत में ये सूर्य की सबसे प्राचीन मूर्तियां है। इसके अलावा एक अन्य रथारूढ़ सूर्य की मूर्ति है। दशावतार सूर्य की प्रतिमा भी यहां मौजूद है।