प्राचीन हनुमान मंदिर, दिल्ली: प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी को समर्पित यह मंदिर भारत की राजधानी दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित है। यह मंदिर भारत में स्थित कई लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। यहां हर दिन विशेषकर मंगलवार और शनिवार के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है। मान्यतानुसार, इस मंदिर में विराजमान हनुमान जी स्वयंभू हैं, अर्थात वह स्वयं ही प्रकट हुए हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि इसी मंदिर के दर्शन करने के बाद तुलसीदास जी ने ‘हनुमान चालीसा’ की रचना की थी। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
मंदिर के तार महाभारत काल से जुड़े होने की वजह से इस मंदिर को प्राचीन हनुमान मंदिर कहा जाता है। मान्यता है, पांडवों ने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद इस मंदिर की स्थापना की थी। कालांतर में, इस मंदिर का निर्माण आंबेर के महाराजा मान सिंह प्रथम ने मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में करवाया था। इस हनुमान मंदिर का वर्तमान स्वरूप सन् 1924 में उस वक्त श्रद्धालुओं के सामने आया जब तत्कालीन जयपुर रियासत के महाराज जय सिंह ने इसका जीर्णोद्धार कराया। इसके बाद तो दुनिया भर में इसकी लोकप्रियता फैलती गई और बजरंग बली ने सब पर अपनी कृपा बरसानी शुरू कर दी।
इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि 01 अगस्त 1964 से यहां चौबीस घंटे लगातार श्री राम, जय राम, जय जय राम मंत्र का जाप किया जा रहा है। इसी वजह से प्राचीन हनुमान मंदिर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी अपनी जगह बना चुका है। पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। अपार भीड़ होने के बावजूद श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। मंदिर कमेटी की अच्छी व्यवस्था के कारण चमत्कारी हनुमान जी के दर्शन होते हैं और दर्शन मात्र से ही चित्त को असीम शांति मिलती है।
यह मंदिर सर्व धर्म समभाव का भी संदेश देता है क्योंकि यहां हर धर्म के श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर के पास ही गुरुद्वारा बंगला साहिब स्थित है तो दूसरी तरफ मस्जिद और चर्च भी हैं। मंदिर के एक पुजारी जी ने बताया कि सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को यहां चोला चढ़ाने की विशेष परम्परा है। चोला चढ़ावे में श्रद्धालु घी, सिंदूर, चांदी का वर्क और इत्र की शीशी का प्रयोग करते हैं। इस मंदिर की एक खास विशेषता यह भी है कि यहां हनुमान जी लगभग 90 साल बाद अपना चोला छोड़कर प्राचीन स्वरूप में आ जाते हैं।