विठोबा/बिट्ठल रुक्मिणी मन्दिर: भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर भारत के महाराष्ट्र प्रांत के सोलापुर जिले के पंढरपुर नगर में स्थित है जिसे श्री विट्ठल रुक्मिणी मन्दिर (Shri Vitthal Rukmini Mandir) नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर विट्ठल (विष्णु के एक रूप) और रुक्मिणी को समर्पित एक प्रमुख मन्दिर है। इसका निर्माण होयसल राजवंश के राजा विष्णुवर्धन ने 1108 से 1152 ईसवी काल में करवाया था। मन्दिर में एक शिलालेख के अनुसार होयसल वंश के राजा वीर सोमेश्वर ने 1237 ईसवी में मन्दिर को एक अपनी देखरेख के खर्चे के लिए एक ग्राम का दान किया था। यह महाराष्ट्र के सबसे अधिक श्रद्धालुओं वाले मन्दिर में से एक है। इस मंदिर के समीप ही पवित्र भीमा नदी है, जिसमें भक्तगण स्नान करते हैं।
पंढरपुर में होने की वजह से इन्हें पंढरीनाथ के नाम से भी जाना जाता हैं। देवशयनी एकादशी (आषाढ़ शुक्ल एकादशी) के दिन भगवान विट्ठल की प्रथम पूजा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री करते हैं। यहां के विठोबा मंदिर श्रीकृष्ण श्रीहरि विट्ठल रूप में विराजमान हैं। यहां पर उनके साथ लक्ष्मी अवतार माता रुक्मणिजी की भी पूजा की जाती है।
एक प्रचलित कथानुसार, 6वीं सदी में एक संत पुंडलिक हुआ करते थे। इनके इष्ट देवता भगवान श्रीकृष्ण जी थे। संत पुंडलिक माता-पिता के परम भक्त थे। अपने भक्त की भक्ति से से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी के साथ पुंडलिक के द्वार पर प्रकट हुए। प्रभु ने उन्हें से पुकार कर कहा कि पुंडलिक हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करते हैं। उस वक्त पुंडलिक अपने पिता की सेवा कर रहे थे। इसलिए उन्होंने प्रभु को इंतजार करने को कहा और पुनः पैर दबाने में व्यस्त हो गए। भगवान ने भक्त की आज्ञा का पालन करते हुए कमर पर दोनों हाथ रखकर पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गए। ईट पर खड़े होने की वजह से उन्हें विट्ठल कहा गया और उनका यह स्वरूप दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ। पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक दरवाजे पर प्रभु से मिलने आये परंतु तब तक प्रभु मूर्ति रूप ले चुके थे। संत पुंडलिक ने उस विट्ठल रूप को ही अपने घर में पूजने के लिए विराजमान कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण का यही बिट्ठल रूप आगे चलकर पंढरपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।
देवउठनी एकादशी पर हर साल यहां भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाती है। इस पावन अवसर पर लाखों कृष्ण भक्त भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए जमा होते हैं। मान्यतानुसार, विट्ठल की यात्रा यहां पिछले 800 साल से लगातार आयोजित की जा रही है।वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते है। इस यात्रा को ‘वारी देना’ कहा जाता है।