घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के महाराष्ट्र प्रांत के दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित है। घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भोलेनाथ की अपार भक्त रही घुष्मा की भक्ति का प्रतीक है। उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था। कहते हैं कि यहा मौजूद सरोवर, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है उसके दर्शन किए बिना ज्योतिर्लिंग की यात्रा संपन्न नहीं होती है।
मान्यतानुसार, जो निःसंतान दम्पती सूर्योदय से पूर्व इस शिवालय सरोवर के दर्शन के बाद घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है उसकी संतान प्राप्ति की कामना अति शीघ्र पूरी होती है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है, सर्व प्रथम स्वंय सूर्यदेव इनकी आराधना करते हैं। मान्यतानुसार, सूर्य के जरिए पूजे जाने के कारण घृष्णेश्वर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों का धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का सुख प्रदान करते हैं। आदि शंकराचार्य ने कहा था कि कलियुग में इस ज्योतिर्लिंग के स्मरण मात्र से रोगों, दोष, दुख से मुक्ति मिल जाती है।
पौराणिक कथानुसार, दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ निवास करता था। इनकी कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण दोनों चिंतित रहते थे। ब्राह्मण की पत्नी ने अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन सुदेहा घुष्मा से करवा दिया। घुष्मा शिव जी की परम भक्त थी। भगवान शिव की कृपा से उसे एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन घुष्मा का हंसता खेलता परिवार देखकर सुदहा को अपनी बहन से ईर्ष्या होने लगी। क्रोध में आकर उसने घुष्मा के पुत्र की हत्या कर उसे कुंड में फेंक दिया।
भगवान शिव की परम भक्त घुष्मा को जब इस बात का पता लगा तो वह बिना दुखी हुए शिव की पूजा में रोज की भांति तल्लीन रही। महादेव उसकी भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए और शिव जी के वरदान से घुष्मा का पुत्र दोबारा जीवित हो उठा। घुष्मा की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसी स्थान पर रहने का वरदान दिया और कहा कि मैं तुम्हारे ही नाम से घुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा यहां निवास करूंगा। प्राचीन काल में यहां घुष्मा ने 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी, जिससे शिव बेहद प्रसन्न हुए थे। यही वजह है कि यहां मनोकामना पूरी होने पर 108 नहीं बल्कि 101 परिक्रमा की जाती है।