ज्योतिर्लिंग – काशीविश्वनाथ मंदिर: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश प्रांत के वाराणसी जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लिए बहुत ही खास मान्यता रखता है। मान्यतानुसार, काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। इस मंदिर को विश्वेश्वर नाम से भी जाना जाता है। विश्वेश्वर अर्थात ‘ब्रह्माड का शासक’।
विश्वनाथ मंदिर का प्रमुख शिवलिंग 60 सेंटीमीटर लंबा और 90 सेंटीमीटर की परिधि में है। मुख्य मंदिर के आसपास काल-भैरव, कार्तिकेय, विष्णु, गणेश, पार्वती और शनि के छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर में 3 सोने के गुंबद हैं, जिन्हें 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था। मंदिर-मस्जिद के बीच एक कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कुआं कहा जाता है। ज्ञानवापी कुएं का जिक्र स्कंद पुराण में भी मिलता है। कहा जाता है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान शिवलिंग को ज्ञानवापी कुएं में छिपा दिया गया था।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान शिव देवी पार्वती से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत आकर रहने लगे। वहीं देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा। भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया।
इतिहासकारों के अनुसार, काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार मुगल शासकों ने ध्वस्त किया। फिर विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने कराया था। उन्होंने साल 1585 में अकबर के आदेश पर नारायण भट्ट की मदद से इसका जीर्णोद्धार कराया। हालांकि काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान ढांचे का निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1777 में कराया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोना दान दिया था।
काशी विश्वनाथ को लेकर एक दिलचस्प पौराणिक कथा प्रचलित है। इससे हमें इसकी कहानी का पता चलता है। एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा में बहस छिड़ गई कि कौन अधिक शक्तिशाली है। इस बहस की मध्यस्थता करने के लिए भगवान शिव ने विशाल ज्योतिर्लिंग का रूप धारण कर लिया था। शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को विशाल ज्योतिर्लिंग के स्रोत और ऊंचाई का पता लगाने को कहा। ब्रह्मा जी अपने हंस पर बैठकर आकाश की तरफ गए ऊंचाई का पता लगाने और विष्णु जी शूकर का रूप धारण करके पृथ्वी के अंदर खुदाई करने लगे, ताकि इसकी गहराई का पता चल सके। दोनों कई युगों तक भी उसके गहराई और ऊंचाई का पता नहीं लगा सके। हारकर भगवान विष्णु ने शिव जी के आगे नतमस्तक हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि उन्होंने इसकी ऊंचाई का पता लगा लिया। शिव भगवान ब्रह्मा जी के झूठ बोलने से क्रोधित हो गए और फिर उन्होंने भगवान् भैरव का रूप धारण किया और ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया और उन्हें शाप दिया कि समारोहों में उनका कोई स्थान नहीं होगा, जबकि विष्णु की अनंत काल तक पूजा की जाएगी।