ज्योतिर्लिंग – नागेश्वर_ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात प्रांत के बाहरी क्षेत्र में द्वारिकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

ज्योतिर्लिंग – नागेश्वर_ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात प्रांत के बाहरी क्षेत्र में द्वारिकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

ज्योतिर्लिंगनागेश्वर_ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात प्रांत के बाहरी क्षेत्र में द्वारिकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को नागों के देवता के रूप में जाना जाता है। द्वारकापुरी में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर में भगवान शिव की एक बहुत बड़ी ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है। जिसकी वजह से यह मंदिर 3 किलोमीटर दूर से ही दिखाई देने लगता है। भगवान भोलेनाथ की मूर्ति करीब 80 फीट ऊंची और 25 फीट चौड़ी है इस मंदिर का मुख्य द्वार अत्यंत साधारण और सुंदर बनाया गया है। मान्यतानुसार, जिन लोगों की कुंडली में नाग, सर्प दोष होता है उन्हें इस मंदिर में अवश्य आना चाहिए। इस मंदिर में अलग-अलग धातुओं से बने नाग-नागिन अर्पित करने से नाग दोष से छुटकारा मिल जाता है।

रुद्र संहिता में इन भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है। नागेश्वर को पृथ्वी पर प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। नागेश्वर का अर्थ है नागों के भगवान। नाग जो भगवान शिव के गर्दन में चारों ओर लिपटा होता है। नागेश्वर मंदिर के मुख्य गर्भ ग्रह में निचले स्तर पर भगवान शिव के एक ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर चांदी का एक बड़ा सा नाग बनाया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे ही माता पार्वती की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इस ज्योतिर्लिंग के मंदिर को भी अत्यंत अद्भुत तरीके से बनाया गया है। मान्यतानुसार, जिन श्रद्धालुओं को इस ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करना होता है वह यहां के पुजारियों से अनुरोध करके सफेद वस्त्र पहनकर अभिषेक कर सकते हैं।

पौराणिक कथानुसार, दारूका नाम की एक राक्षस कन्या ने मां पार्वती की कठिन तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने मुंह मांगा वरदान दिया। वरदान मांगते हुए दारुका ने कहा कि हम दारुका वन नहीं जा सकते हैं, लेकिन वहां पर कई प्रकार की दैवीय औषधियां है। सत्कर्मों के लिए हम राक्षसों को उस वर में जाने का वरदान दें। ऐसे में मां पार्वती ने उन्हें वरदान दे दिया। लेकिन जैसे ही उन्हें वरदान मिला वैसे ही उन्होंने वन में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और वन को देवों से छीन लिया। इसके साथ ही वन में रहने वाले शिव भक्त सुप्रिया को बंदी बना लिया। ऐसे में सुप्रिया ने शिव जी की तपस्या करके राक्षसों से खुद का बचाव और उनका नाश का वरदान मांगा। अपने भक्त की आवाज सुनकर भगवान शिव एक बिल से प्रकट हुए और उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुंदर मंदिर प्रकट हुआ और बीच में एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था।