धन्वंतरि मंदिर, वाराणसी: भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक समुद्र मंथन से प्रकट भगवान धन्वंतरि का मात्र एक मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के सुडिया में स्थित है। मंदिर में धनतेरस के दिन खास पूजा होती है। मंदिर में भगवान धनवंतरि की ढाई फ़ीट ऊंची 25 किलोग्राम की रत्नजड़ित मूर्ति अष्टधातु की बनी है। यहां भगवान धनवंतरि की 326 साल से पूजा की जा रही है। भगवान धनवंतरि का ये मंदिर साल में एक बार धनतेरस के दिन ही खुलता है।
धन्वंतरि मंदिर (Dhanvantari Temple) में आज धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी के सुड़िया में भगवान धनवंतरि की भारत में एकमात्र मूर्ति है। यहां साल में सिर्फ एकबार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरि के दर्शन के लिए मंदिर का पट खुलता हैं। आज यहां भगवान धनवंतरि के मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए 5 घंटे के लिए खुला रहेगा। आरोग्य और सुख समृद्धि के लिए देश-विदेश के दर्शनार्थी भगवान धनवंतरि के दर्शन का इंतजार करते हैं। मंदिर का पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भारी-भीड़ भगवान के दर्शन के लिए आतुर रहती है।
अष्टधातु से बनी भगवान धन्वंतरि की मूर्ति की छवि सभी भक्तों का मन मोह लेती है। भगवान के एक हाथ में अमृत कलश और दूसरे हाथ में शंख है। भगवान तीसरे हाथ में चक्र और चौथे हाथ में जोंक लिए हुए दोनों ओर सेविकाएं चंवर डोलाती नज़र आती हैं। दिव्य झांकी के दर्शन करने के बाद भक्त मंडली भगवान धनवंतरी का जयकारा लगाते हैं। पूजन के बाद हिमालय से लाए पुष्प, वनस्पति एवं जड़ी बूटियों से भगवान धन्वंतरि को भोग लगाया जाता है। इन्हीं जड़ी बूटियों से साल भर रोगियों का आयुर्वेद के जरिए इलाज भी होता है। भगवान धनवंतरि के पट खुलने का ये 327 वां साल है।
राजवैद्य स्व. शिवकुमार शास्त्री का परिवार पांच पीढ़ियों से भगवान धन्वंतरि की पूजा करता आ रहा है। उनके बाबा पं. बाबूनंदन जी ने 326 साल पहले धन्वंतरि जयंती की शुरुआत की थी। इस मंदिर में कई असाध्य रोगों का इलाज होता है। वैद्यराज के पुत्र रामकुमार शास्त्री, नंद कुमार शास्त्री व समीर कुमार शास्त्री पूरे विधान से काशी के इस आयुर्वेद की परंपरा को निभा रहे हैं। कई असाध्य रोगों का आयुर्वेदिक इलाज यहां से होता है। देश-विदेश के कई ख्याति प्राप्त लोगों ने यहां से अपना इलाज कराया है और यहां के इलाज से उनके रोग जड़ से खत्म हुए हैं।