शक्तिपीठ – विशालाक्षी देवी मंदिर: मां भगवती को समर्पित यह शक्ति पीठ भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के वाराणसी शहर में स्थित है। पौराणिक काल में यहां पर माता सती का कर्णकुंडल गिरा था। माता का यह मंदिर गंगा नदी के किनारे मणिकर्णिका घाट पर स्थित है। मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1908 में मद्रासियों ने कराया। गर्भगृह को छोड़कर मंदिर का अन्य भाग दक्षिण भारतीय मंदिर शैली का बना हुआ है। मंदिर में मां विशालाक्षी की दो मूर्तियां हैं। सन् 1971 में अभिषेक करते समय पुजारी की गलती से मां की मुख्य प्रतिमा की अंगुली खण्डित हो गयी थी। जिसके बाद खण्डित प्रतिमा के आगे मां की दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई।
देवी पुराण में वर्णित 51 शक्तिपीठों (तंत्र चूड़ामणि के अनुसार 52 शक्तिपीठों) में मां विशालाक्षी का भी वर्णन मिलता है। वाराणसी के मीरघाट मुहल्ले में स्थित इस शक्तिपीठ में भक्तों को मां विशालाक्षी की दो प्रतिमाओं के दर्शन करने को मिलते हैं। माता की दो मूर्तियों में एक पुरानी और एक नई है, जिसे चल और अचल माना जाता है, जिनका प्रतिदिन विधि-विधान के साथ समान रूप से श्रृंगार एवं पूजन किया जाता है। मां विशालाक्षी के मंदिर की बनावट में आपको दक्षिण भारतीय शैली नजर आएगी। स्थानीय लोग भी मां विशालाक्षी को दक्षिण भारत वाली माता के नाम से बुलाते हैं। मंदिर के बाहरी भाग पर रंग-बिरंगे रूप में गणेश जी, शंकर जी समेत कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। यहां की शक्ति विशालाक्षी माता तथा भैरव काल भैरव हैं। मंदिर में भादों मास पर भव्य आयोजन किया जाता है।
काशी के नव शक्ति पीठों में मां विशालाक्षी का महत्वपूर्ण स्थान है। मीरघाट पर गलियों से होते हुए पहुंचने पर धर्मेश्वर महादेव के निकट ही मां विशालाक्षी का भव्य मंदिर स्थित है। मान्यतानुसार, इस स्थान पर मां सती का कर्ण कुण्डल और उनकी आंख गिरी थी। जिससे इस स्थान की महिमा और महात्म्य दोनों काफी बढ़ गए। शास्त्रानुसार, काशी के कर्ताधर्ता बाबा विश्वनाथ मां विशालाक्षी के मंदिर में विश्राम करते हैं। स्कंद पुराण में वर्णित कथानुसार जब ऋषि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था, तब विशालाक्षी एक गृहिणी की भूमिका में प्रकट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया। विशालाक्षी की भूमिका बिलकुल अन्नपूर्णा के समान थी।