शक्ति पीठ – अंबाजी माता मंदिर: माँ भगवती को समर्पित 51 शक्ति पीठों में से एक ‘अंबाजी माता मंदिर’ शक्ति पीठ गुजरात-राजस्थान सीमा पर अरासुर पर्वत पर स्थित है। माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर स्थित इस मंदिर में मां भगवती की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां पर एक श्रीयंत्र स्थापित है। उसे इस ढंग से सजाया जाता है कि देखने वालों को उसमें माँ का विग्रह नजर आता है। खास बात यह है कि यह श्रीयंत्र सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देता और न ही इसका फोटो लिया जा सकता है। इसकी पूजा केवल आंखों पर पट्टी बांधकर ही की जाती है। मान्यतानुसार, यहां माँ सती का ह्दय गिरा था, जिसका उल्लेख तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है।
अंबाजी माता मंदिर (Ambaji Mata Temple) का जीर्णोद्धार 1975 में शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है। सफेद संगमरमर से बना यह भव्य मंदिर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर का शिखर 103 फुट ऊंचा है और उस पर 358 स्वर्ण कलश सुसज्जित हैं। मंदिर से लगभग 3 किमी. की दूरी पर गब्बर नामक एक पहाड़ है, जहां देवी का एक और प्राचीन मंदिर स्थापित है। मान्यतानुसार, इसी पहाड़ पर माँ के पदचिह्न एवं रथचिह्र बने हैं। लंबे समय से चली आ रही प्रथा के अनुसार अंबा जी के दर्शन के बाद, श्रद्धालु गब्बर पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में ज़रूर जाते हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा पर यहां मेले जैसा उत्सव होता है। नवरात्र के अवसर पर मंदिर में गरबा और भवाई जैसे पारंपरिक नृत्यों का आयोजन किया जाता है।
मान्यतानुसार, इस मंदिर पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था और भगवान श्रीराम ने भी यहां आकर शक्ति की उपासना की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम और लक्ष्मण रावण द्वारा सीता जी का अपहरण करने के बाद सीता की खोज में माउंट आबू या आबू के जंगल में आए थे। श्रृंगी ऋषि ने उन्हें गब्बर पर्वत पर देवी अम्बा की पूजा करने की सलाह दी। अंबा देवी ने राम को एक बाण दिया, जिसका उपयोग भगवान राम ने रावण का अंत करने में किया था।
अंबाजी मंदिर का इतिहास रामायण काल के साथ साथ महाभारत काल से भी जुड़ा है। पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान देवी अंबाजी की पूजा की थी। अंबाजी ने भीम को अजयमाला नामक एक माला दी जिसने युद्ध में भीम को अजेय रखा। उन्होंने अर्जुन को विराट के दरबार में छिपते हुए अपने निर्वासन के अंतिम वर्ष में बृहनाल के रूप में भेस के लिए दिव्य वेशभूषा दी। एक अन्य कथा के अनुसार, विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को अपना पति बनाने के लिए यहां देवी अंबाजी की पूजा की थी। महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजी जाने वाली अंबा देवी शक्ति के दिल का प्रतीक है और भारत में प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है।