सालासर बालाजी मंदिर: भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमानजी को समर्पित यह मंदिर राजस्थान प्रांत के चुरू जिले के सुजानगढ़ क्षेत्र में स्थित है।

सालासर बालाजी मंदिर: भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमानजी को समर्पित यह मंदिर राजस्थान प्रांत के चुरू जिले के सुजानगढ़ क्षेत्र में स्थित है।

सालासर बालाजी मंदिर: भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमानजी को समर्पित यह मंदिर राजस्थान प्रांत के चुरू जिले के सुजानगढ़ क्षेत्र में स्थित है। सालासर धाम में विराजित मूर्ति की स्थापना संत मोहनदास जी महाराज ने संवत 1811 में की। यहां नारियल चढ़ाने पर भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

सालासर बालाजी मंदिर में स्थापित बालाजी हनुमान जी की मूर्ति स्वयंभू होने के पीछे एक कथा प्रचलित है। नागौर जिले में असोटा गांव का एक किसान खेत जोत रहा था। जोतते समय उसका हल किसी पथरीली चीज से टकराया। खोद कर देखने पर मिट्टी में सनी कोई मूर्ति मिली। उसकी पत्नी ने अपनी धोती से उसे पौंछ कर देखा तो मालूम पड़ा कि वो किसी और की नहीं बालाजी हनुमान जी की मूर्ति थी। किसान ने इसकी जानकारी गांव के ठाकुर को दी। अगली रात ठाकुर के स्वप्न में बालाजी ने आकर आदेश दिया कि इस मूर्ति को चुरू जिले के सालासर भेज दिया जाये। उसी रात्रि हनुमान जी के सिद्ध भक्त संत मोहनदास को स्वप्न में बालाजी ने असोटा की मूर्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरंत असोटा के ठाकुर को यह संदेश भेजा। बिना बताये मोहनदास को मूर्ति का भान होना ठाकुर को अचंभित कर गया। अपने आराध्य को लाने के लिए संत सालासर की ओर प्रस्थान करके बालाजी की अगुवाई की। बालाजी की मूर्ति को बैलगाड़ी में ले जाया गया। संत मोहनदास ने कहा कि ये बैल जहां रुक जायेंगे वहीं बालाजी की स्थापना होगी। बैल कुछ दूर मिट्टी के टीले पर रुक गए और फिर वहीं बालाजी की मूर्ति की स्थापना कर दी गई। चढ़ावे में आए 5 रुपयों से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। अगले 4 साल में मंदिर बनकर तैयार हो गया।

शुरुआत से ही बालाजी को नारियल का चढ़ावा शुरू हो गया। कुछ वर्ष बाद नारियल चढ़ाने पर मन्नतें पूरी होने लगीं। पहले चढ़े हुए नारियलों को जला दिया जाता था। लेकिन पुजारी को आए एक स्वप्न के बाद नारियलों को जलाना बंद कर दिया गया। तत्पश्चात उन्हें 11 किलोमीटर दूर 250 बीघा क्षेत्र में जमीन में दबाना शुरू कर दिया। इसका असर भी दिखा। अब पहले से ज्यादा भक्तों की मन्नतें पूर्ण होने लगीं।