शक्ति पीठ – हिंगलाज माता मंदिर: हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगोल नदी के किनारे अघोर पर्वत पर स्थित है।

शक्ति पीठ – हिंगलाज माता मंदिर: हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगोल नदी के किनारे अघोर पर्वत पर स्थित है।

शक्ति पीठ – हिंगलाज माता मंदिर: हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के हिंगोल नदी के किनारे अघोर पर्वत पर स्थित है। यह इलाका पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बॉर्डर पर है। यहां छोटी सी गुफा में माता की मिट्‌टी से बनी शिला की पूजा की जाती है। हिंगलाज को हिंगुला भी कहा जाता है और कोटारी शक्तिपीठ के तौर पर भी जाना जाता है।

पौरिणिक कथानुसार, जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे उन स्थानों पर शक्ति पीठ की स्थापना हुई है। इनमें से ही मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है हिंगलाज माता का शक्ति पीठ। ये शक्ति पीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। हर साल नवरात्रि के समय यहां मेला लगता है और मां के भक्तों की धूम रहती है। हिंगलाज माता का दर्शन वहां के मुस्लिम अनुयायी भी करते हैं। आइए जानते हैं हिंगालाज माता के शक्ति पीठ के बारे में।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की लारी तहसील में हिंगलाज माता का शक्ति पीठ आज भी स्थापित है। ये कराची से करीब 250 किलो मीटर की दूरी पर पहाड़ियों के बीच में स्थित है। हिंगलाज माता को यहां हिंगुला माता या नानी का मंदिर भी कहते हैं। हिंगुला माता को जाटों की कुल देवी माना जाता है। आज भी भारत के गुजरात, राजस्थान, पंजाब और पूरे पाकिस्तान से श्रद्धालू यहां आते हैं। नवरात्रि के अवसर पर आज भी यहां मेला लगाता है। यहां तक कि हिंगलाज माता के भक्तों में पाकिस्तान के मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं। वो लोग इस मंदिर को नानी का मंदिर और मां दुर्गा को बीबी नानी कहते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के दाह के बाद जब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर ताण्डव कर रहे थे। तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चला कर मां सती के शरीर के टुकड़े कर दिए थे। मान्यता है कि उस काल में हिंगलाज में माता सती का ब्रह्मरंध्र अर्थात सिर गिरा था। तब से यहां हिंगलाज मात के शक्ति पीठ की स्थापना हुई है। इस शक्ति पीठ का वर्णन शिव पुराण, देवी भगवती पुराण और कलिका पुराण आदि में मिलता है। हिंगलाज माता के भैरव कोट्टवीशा या भीमलोचन कहे जाते हैं। इनके अतिरिक्त यहां पर भगवान गणेश, माता काली और गोरखनाथ की धूनी भी स्थापित हैं।